क्या नेपाल नहीं रहा अब भारत के भरोसे के काबिल?
भारत ने पिछले कई वर्षों से नेपाल के साथ चल रहे अपने संबंधों के उतार-चढ़ाव के मद्देनजर एक बड़ा फैसला लिया है। इसके तहत अब नेपालियों को भारतीय सेना में भर्ती नहीं किया जाएगा। भारत के इस फैसले ने नेपाल को अंदर ही अंदर भारी झटका महसूस होना तय है।
हालांकि भारत ने इस फैसले के पीछे कोई खास वजह नहीं बताई है। मगर माना जा रहा है कि नेपाल द्वारा पिछले कुछ वर्षों में भारत के विरोध में खड़े होना और चीन से संपर्क बढ़ाना इसका कारण हो सकता है। भारत इसके जरिये हो सकता है कि नेपाल को एक संदेश देने की कोशिश भी कर रहा हो। ताकि नेपाल अपने रवैये में बदलाव लाए और चीन के गीत गाना बंद करे।
इस फैसले के बाद भारत में नेपाल के राजदूत शंकर प्रसाद शर्मा ने सोमवार को कहा कि नेपाल से गोरखाओं की अग्निपथ योजना के तहत भारतीय सेना में भर्तियों को ‘‘रोक’’ दिया गया है लेकिन अभी मामला समाप्त नहीं हुआ है। शर्मा ने यहां संवाददाताओं से बातचीत में कहा कि फिलहाल दोनों देशों की सरकारों के बीच इस मुद्दे पर कोई ‘‘गंभीर बातचीत’’ नहीं हो रही है। उन्होंने कहा, ‘‘मुझे नहीं लगता कि इस पर मामला बंद हो गया है। भारत ने अग्निपथ पर कोई तंत्र विकसित किया है और नेपाल से भर्ती के लिए उसी तंत्र का इस्तेमाल करना चाहेगा। नेपाल कुछ और कह रहा है। हम पुरानी प्रणाली चाहते हैं। बस यह मसला है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘ये अभी बंद नहीं हुआ है लेकिन मैंने दोनों देशों के बीच कोई गंभीर बातचीत होते नहीं देखी तो मैं बस यह कहूंगा की यह रूका हुआ है।’’
भारतीय सेना करती रही है गोरखाओं की भर्ती
अभी तक भारतीय सेना गोरखाओं की भर्ती करती रही है। ये नेपाली सैनिक पहाड़ों में चढ़ने में बहुत माहिर होते हैं। मिनटों सेकेंडों में वह ऊंचे-ऊंचे पहाड़ों पर चढ़ जाते हैं। भारतीय सेना में अलग से बकायदे गोरखा रेजीमेंट बना हुआ है। यह अब तक भारत-नेपाल के पुराने रिश्ते और भरोसा का भी प्रतीक है। मगर अब भारत ने नेपालियों की अग्निवीर योजना में भर्ती लेना बंद कर दिया है। इससे नेपाल में खलबली मचनी तय है।